दार्शनिकों ने बहुत से दर्शन रचे हैं किसी ने अद्वैत कहा है और किसी ने कुछ और कहा है। नास्तिकों ने तो ईश्वर के अस्तित्व का ही इन्कार कर दिया। जैसे नास्तिकों के कहने से ईश्वर का अस्तित्व शून्य नहीं हो जाता ऐसे ही किसी के लिख देने से सृष्टि ईश्वर नहीं हो सकती। ईश्वर और आत्मा अनदेखी हक़ीक़तें हैं। इनके बारे में भी सोचें और हरेक पहलू को सामने रखें और यह देखें कि दर्शनों की रचना से पूर्व भारतीय ऋषि ईश्वर का क्या स्वरूप बताया करते थे ?
मूल धर्म वही है।
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वैसे दर्शनों की रचना से पूर्व मूल धर्म क्या था ????????
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